सुपौल। चार दिवसीय प्रवास के बाद तेरापंथ धर्म संध के 11वें आचार्य महाश्रवण की विदुषी शिष्या साध्वी स्वर्ण रेखा जी अपनी तीन सहयोगी साध्वियों के साथ बुधवार को राघोपुर के लिए बिहार रवाना हो गईं। प्रवास के अंतिम दिन प्रातःकालीन प्रवचन के दौरान जैन धर्मावलंबी भाई-बहनों ने भावविह्वल होकर साध्वी श्री को विदाई दी।
इस अवसर पर मानमल पारख ने साध्वी श्री के प्रवास के दौरान कहे गए अमृतवाणी को आत्मसात करने पर जोर दिया और चार दिन के प्रवास के दौरान हुई किसी भी प्रकार की कठिनाई के लिए साध्वी श्री से क्षमा भी मांगी। वहीं नवरत्न पारख ने कहा कि साधू-संतों के आगमन से आध्यात्मिक वातावरण बनता है, जिससे श्रावकों में नई ऊर्जा का संचार होता है और उनके जीवन में धर्म के संस्कार से धन्यता आती है।
तेरापंथी सभा के जितेन्द्र सेठिया ने भी अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि विदाई का समय बहुत दुखदायी होता है, लेकिन साध्वी श्री को धर्म संध के आचार्य की आचार संहिता का पालन करना होता है। इस मौके पर सेठिया ने एक विदाई गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।
साध्वी श्री ने अपने संबोधन में भगवान महावीर के वचन "प्रिय बोलो" को याद करते हुए कहा कि प्रिय बोलने से किसी अप्रियता की संभावना नहीं रहती। उन्होंने समाज और परिवार के टूटने का कारण कटु शब्दों को बताया और सभी को मीठे शब्दों का प्रयोग करने की सलाह दी।
साध्वी जी ने जैन धर्मावलंबियों से माह में चार उपवास और सामायिक जैसे धार्मिक कृत्य करने का आग्रह किया। प्रवास के दौरान श्रावक समाज की सेवा और धर्म संध के प्रति उनकी समर्पण भावना की भी उन्होंने भूरी-भूरी प्रशंसा की।
प्रवास के अंतिम दिन दर्जनों भाई-बहनों ने हरीशंकर अरुण के निवास पर साध्वियों को विदाई दी और भगवान महावीर और धर्म संध के आचार्य के नारों के साथ उन्हें रात्री विश्राम स्थल तक पहुंचाया।
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