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राष्‍ट्रीय प्रेस दिवस : मीडिया की भूमिका विभिन्‍न क्षेत्रों में होती है अहम, प्रेस लोकतंत्र का है चौथा स्‍तंभ : डीएम कौशल कुमार




  • डीएम की अध्‍यक्षता में राष्‍ट्रीय प्रेस दिवस पर कार्यक्रम का हुआ आयोजन
  • डीएम ने वरिष्‍ठ पत्रकारों से किया अनुरोध, नये पत्रकारों को करें प्रशिक्षित
  • डीएम ने कहा-मीडिया मेरे लिये है एक आईना  
  • जहाँ न पहुँचे रवि-वहाँ पहुँचे मीडिया कर्मी : एसपी शैशव यादव 

सुपौल। समाहरणालय स्थित लहटन चौधरी सभागार में शनिवार को जिलाधिकारी कौशल कुमार की अध्यक्षता में दीप प्रज्ज्वलित कर राष्ट्रीय प्रेस दिवस का शुभारंभ किया गया। इस वर्ष राष्ट्रीय प्रेस दिवस का मुख्य थीम ‘‘प्रेस का बदलता स्‍वरूप‘‘ है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस के मुख्य थीम पर सभी उपस्थित पदाधिकारी एवं मीडिया कर्मियों द्वारा अपना-अपना सुझाव एवं विचार रखा गया। वहीं प्रेस दिवस के अवसर पर वरिष्ट पत्रकारों द्वारा जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, उप विकास आयुक्त, अपर समाहर्त्ता एवं जिला जन सम्पर्क पदाधिकारी को पुष्प-गुच्छ देकर सम्मानित किया गया।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिलाधिकारी ने कहा क‍ि ‘‘मीडिया मेरे लिए एक आईना है‘‘ जिसमें हमलोग अपने कमियों को देखते है और उसमें उत्तोतर सुधार लाते हैं। इसलिए मीडिया की भूमिका विभिन्न क्षेत्रों में अहम होती है। कहा कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। डीएम ने वरिष्ठ पत्रकारों से अनुरोध किया गया कि नये मीडिया कर्मियों को प्रशिक्षित व प्रोत्साहित करें।

इस अवसर पर पुलिस अधीक्षक शैशव यादव ने अपने संबोधन में कहा कि ‘‘जहाँ न पहुँचे रवि-वहाँ पहुँचे मीडिया कर्मी‘‘। इसके साथ ही पुलिस अधीक्षक द्वारा यह भी सुझाव दिया गया कि विभिन्न सूचनाओं को यू-टयूब पर डालने वाले यू-टयूबरों की जवाबदेही निर्धारित किया जाय। साथ ही जानकारी दी गई कि मीडिया के माध्यम से भी आम लोंगों की राय/विचार परिलक्षित होता है। मीडिया कर्मी द्वारा दूरस्त गाँवों/कस्बों में जाकर समाचार संग्रह कर प्रेस के माध्यम से लोगों तक पहुँचाते हैं। समाज में प्रेस का काफी अधिक महत्व है। 
 
मौके पर विनय कुमार मिश्र, राजीव झा, रंजीत ठाकुर, शशांक राज, प्रमोद कुमार यादव, रघुवंश कुमार, चंदन कुमार, मो नजीर आलम, शिवशंकर पीयूष, प्रमोद विश्‍वास, संतोष आनंद, विजय कुमार गुप्‍ता, आशु राजा, जुबेर अंसारी, बाबुल कुमार, राजीव कुमार सिंह, दीप नारायण कुमार, मो अखतरूल इसलाम, कुणाल कुमार, सुबेश राज, सुनील कुमार, विकास कुमार, विष्‍णु गुप्‍ता, मो आजाद, अंजनी कुमार, इंद्रभूषण कुमार, अनिल कुमार मेहता समेत सभी इलेक्ट्रॉनिक/प्रिंट मीडिया के प्रतिनिधि उपस्थित हुए। 



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प्रेस का बदलता स्‍वरूप 
हाल के वर्षों में मीडिया में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। सोशल मीडिया, ब्लॉग और पॉडकास्ट समेत कई प्लेटफॉर्म के उदय ने पारंपरिक भौगोलिक बाधाओं को तोड़कर पहुंच का विस्तार किया है। इस बदलाव ने दर्शकों को वास्तविक समय में समाचार तक पहुंचने और विविध दृष्टिकोणों से जुड़ने में सक्षम बनाया है। इन प्लेटफॉर्म ने व्यक्तिगत आवाजों को भी सशक्त बनाया है। जिससे नागरिक पत्रकारिता और संवाद के माध्यम से कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों की अधिक से अधिक बातचीत की अनुमति मिली है। डिजिटल प्लेटफॉर्म ने प्राकृतिक आपदाओं या कोविड-19 महामारी के दौरान समाचारों के तेजी से प्रसार को सक्षम किया है, जहां समय पर जानकारी सार्वजनिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थी।

तकनीकी प्रगति से परे प्रेस सामाजिक परिवर्तन को जीवंत करने में भी बढ़ती भूमिका निभा रहा है। लैंगिक समानता, नस्लीय अन्याय और जलवायु कार्रवाई जैसे मुद्दे मीडिया कवरेज के माध्यम से प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैंं, जिसे अक्सर सामाजिक आंदोलनों और अभियानों द्वारा बढ़ाया जाता है। प्रेस इन चर्चाओं में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है, न केवल घटनाओं पर बल्कि जनता की राय और नीतिगत निर्णयों को भी प्रभावित कर रहा है। चाहे गहन खोजी पत्रकारिता हो या ऑनलाइन प्रचार का तेजी से प्रसार, मीडिया हमारे समय के कुछ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों के इर्द-गिर्द सक्रिय रूप से कहानी को आकार दे रहा है।

उभरती हुई प्रेस कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जो इसकी विश्वसनीयता और सटीकता और जवाबदेही के मूल्यों को खतरे में डालती हैं। एक महत्वपूर्ण मुद्दा समाचारों का निरंतरीकरण है, जहां आउटलेट लैंटिव रिपोर्टिंग पर ध्यान खींचने वाली सुर्खियों को प्राथमिकता देते हैं। अक्सर भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को भड़काने के लिए कथा को विकृत करते हैं। पाल्ड न्यूज़ के उदय के साथ जहां पक्षपातपूर्ण सामग्री को भुगतान या प्रोत्साहन के बदले में प्रस्तुत किया जाता है, जनता के विश्वास को और कम करता है। फर्जी खबरों का प्रसार और डीपफेक यानी हेरफेर किए गए वीडियो या धोखा देने के लिए डिज़ाइन किए गए वीडियो के उद्भव ने इन चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। खासकर जब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इसका तेजी से प्रसार हो रहा है। ऐसे युग में जहां गति अक्सर सटीकता को बढ़ाती है। प्रेस को पत्रकारिता की संयमता बनाए रखते हुए इन मुद्दों का मुकाबला करना चाहिए, पैक्ट चोकिंग पहल और एआई संचालित उपकरण कुछ समाधान प्रदान करते हैं। लेकिन गलत सूचना और गलत सूचना के खिलाफ लड़ाई भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य बनी हुई है।

भविष्य की ओर देखते हुए प्रेस समाज के साथ-साथ विकसित होता रहेगा। जबकि प्लेटफॉर्म और प्रौद्योगिकियों अधिक जुड़ाव और सक्रियता के लिए रोमांचक अवसर प्रदान करती हैं। वे ऐसी चुनौतियाँ भी पेश करती हैं, जिनसे उद्योग को सावधानीपूर्वक निपटना चाहिए। उभरते मीडिया परिदृश्य के साथ-साथ इसकी चुनौतियों और सकारात्मक प्रभावों को समझने के लिए भारतीय परिषद ने इस वर्ष के प्रेस दिवस समारोह के लिए प्रेस की बदलती प्रकृति थीम चुनी है।


राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष 

राष्ट्रीय प्रेस दिवस 16 नवंबर भारत में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस का प्रतीक है। यह वह दिन था जिस दिन भारतीय प्रेस परिषद ने नैतिक प्रहरी के रूप में काम करना शुरू किया। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रेस न केवल इस शक्तिशाली माध्यम से अपेक्षित उच्च मानकों को बनाए रखे, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि यह किसी भी बाहरी कारकों के प्रभाव या खतरों से बाधित न हो। हालाँकि दुनिया भर में कई प्रेस या मीडिया परिषदें हैं। लेकिन भारतीय प्रेस परिषद इस मामले में एक अनूठी संस्था है। क्योंकि यह प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने के अपने कर्तव्य में राज्य के साधनों पर भी अधिकार का प्रयोग करने वाली एकमात्र संस्था है।

1956 में प्रेस परिषद की स्थापना की सिफारिश करते हुए प्रथम प्रेस आयोग ने निष्कर्ष निकाला था कि पत्रकारिता में पेशेवर नैतिकता बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका वैधानिक प्राधिकरण के साथ एक निकाय का गठन करना होगा। जिसमें मुख्य रूप से उद्योग से जुड़े लोग होंगे। जिनका कर्तव्य मध्यस्थता करना होगा। इसी उद्देश्य से भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की गई और 16 नवंबर 1966 से विकसित निकाय ने अपने उद्देश्य को पूरा किया है। इसलिए 16 नवंबर देश में जिम्मेदार और स्वतंत्र प्रेस का प्रतीक है। जो लोग इसे संजोते हैं, वे इस दिन को याद करते हैं।

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