सुपौल। जीवन में दु:संग से सदैव बचना चाहिए। क्योंकि दु:संग अर्थात कुसंग हमारे जीवन को अस्त-व्यस्त, नष्ट-भ्रष्ट कर देता है और यह कोई जरूरी नहीं है कि यह बहुत समीपवर्ती होने के बाद ही प्रभावित किया करता है, यह केवल देखने और सुनने मात्र से भी आपके जीवन को नष्ट-भ्रष्ट कर सकता है। उक्त बातें कथावाचक वृंदावन से आये गोवर्धन दासाचार्य जी महाराज उर्फ गोविंद देव महाराज ने सिमराही नगर पंचायत के वार्ड नंबर एक में परमानंद मिश्र के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन प्रवचन के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि वृद्ध, युवक अथवा आज कल की नई पीढ़ी के बच्चों को बहुत कुछ शिक्षा ग्रहण करने की आवश्यकता है। एक स्वस्थ्य, सभ्य, सर्वहितप्रद समाज और संसार के निर्माण के लिए इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, और यह शिक्षा हम सभी को भक्त अजामिल की कथा से मिलती है। कहा कि सदाचरण आदि गुण एक मात्र धर्म से ही संभव है। धर्महीन होने का वास्तविक अर्थ सदाचार हीन होना, अनुशासन विहीन होना, चरित्र हीन होना आदि ही तो है और यह एक गंभीर विषयों में से एक है।
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