- अररिया के सीमावर्ती क्षेत्रों से लगती जिले के पंचायतों में दर्जनों ट्रैक्टर से रेत निकाल बेच रहे अवैध कारोबारी
सुपौल। जिले के अररिया सीमा से लगते क्षेत्र में सुरसर नदी से अवैध बालू खनन का दौर बदस्तूर जारी है। हालात इतने बद्तर हो चुके हैं कि अब एक ही जगह से दिन भर में 25-30 ट्रैक्टर ट्राली का कारोबार हो रहा है और स्थानीय प्रशासन हाथ पर हाथ धरे तमाशबीन बना है। मामला इस कदर सेट है ठीकरा सीधा खनन विभाग पर जाकर फूटता है। लेकिन जमीनी हकीकत है कि रोक टोक करने वाले स्थानीय जिम्मेदार सबकुछ जान कर भी अनभिज्ञ बने हुए हैं। सुरसर के कछार को दिनभर दर्जनों ट्रैक्टर रौंदते रहते हैं। लेकिन जब मामला संज्ञान में दिया जाता है तो जवाब कब, कहां और कैसे में मिलता है। जबकि उक्त अवैध कारोबारी गाहे-बगाहे आसपास मंडराते भी देखे जा सकते हैं। सूत्रों की मानें सारा खेल सेटिंग्स के तहत हो रहा है। बताया कि छातापुर प्रखंड के ठूठी पंचायत से लगते सीमावर्ती क्षेत्र में दिन भर पंपसेट से बालू का अवैध खनन होता है जो आसपास के बिल्डिंग मैटेरियल सप्लायर के दुकानों में खपने के अलावा अररिया जिले के सीमावर्ती बाजारों तक पहुंच रहा है। प्रति ट्रेलर 2000-2500 में बेचकर अवैध कारोबारी जहां मालामाल हो रहे हैं। वहीं सरकार को राजस्व की भारी क्षति पहुंच रही है। हैरानी तब होती है जब हर दिन यह गोरखधंधा परवान चढ़ता है और स्थानीय प्रशासन टोकने तक की जहमत नहीं उठा पाता। गाहे-बगाहे जब कभी खनन वि भाग की टीम छापेमारी करती है तो पकड़ में आए एक-दो ट्रैक्टर मालिकों से हर्जाना वसूल कर वाहन को मुक्त कर दिया जाता है। जानकारों की मानें तो साल दर साल होते इस अवैध खनन से नदी का स्वरूप बदल गया है और तटबंध के भीतर खेती किसानी को व्यापक रूप से प्रभावित कर रहा है। इतना ही नहीं दोनों तटबंध के बीच के वन क्षेत्रों की दशा भी दयनीय हो गई है। कमोबेश यही स्थिति भीमपुर, माधोपुर, रामपुर, झखाड़गढ, डहरिया, घीवहा आदि पंचायतों से प्रवाहित सुरसर नदी के कछार की भी है जहां दिनभर अवैध खनन का कारोबार फलफूल रहा है। व्यापक पैमाने पर मिट्टी व रेत खनन की वजह से जहां अवैध कारोबारी दिनदूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। वहीं पर्यावरण सहित सरकार को नुकसान पहुंच रहा है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि सुरसर नदी के क्षतिग्रस्त तटबंधों के कारण हर साल मानसून सत्र में सीमावर्ती किसानों को फसलों की क्षति उठानी पड़ती है। बावजूद दबंगई के तहत चल रहे इस अवैध खनन को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। हाल के वर्षों में किसानों के हितार्थ लाखों की राशि ख़र्च कर खंडित तटबंध को दुरुस्त करने का जिम्मा चंद पंचायतों को दिया गया। मनरेगा की राशि चंद जगहों पर खपाई भी गई, लेकिन ठेकेदारी प्रथा की आड़ में नतीजे ढाक के तीन पात ही साबित हो रहे हैं।
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