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समाहरणालय में फरोग-ए-उर्दू सेमिनार, मुशायरा एवं कार्यशाला का हुआ आयोजन, जिला उर्दू नामा स्मारिका का किया गया विमोचन

  • उर्दू किसी कौम की भाषा नहीं बल्कि सबको साथ जोड़ने वाली भाषा : डीएम

सुपौल। समाहरणालय स्थित लहटन चौधरी सभागार भवन में शनिवार को फरोग-ए-उर्दू सेमिनार, मुशायरा एवं कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता जिला कल्याण पदाधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल ने की। कार्यक्रम का उदघाटन जिलाधिकारी कौशल कुमार एवं पुलिस अधीक्षक शैशव कुमार यादव ने दीप प्रज्जवलित कर किया। साथ ही उर्दू भाषा कोषांग द्वारा "जिला उर्दू नामा" नाम की स्मारिका का विमोचन उपस्थित अतिथियों द्वारा किया गया। जिला पदाधिकारी कौशल कुमार ने कहा कि उर्दू किसी कौम की भाषा नहीं बल्कि सबको साथ जोड़ने वाली भाषा है। आधुनिकता के इस समय में हम विभिन्न भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर रहे हैं परंतु हमें विरासत में मिली भाषा को साथ लेकर चलना है। पुलिस अधीक्षक शैशव यादव ने कहा कि उर्दू किसी कौम की भाषा नहीं बल्कि हिंदुस्तान की भाषा है और उर्दू के कारण ही भारत में गंगा जमुना तहजीब को मजबूती मिली है।


 कार्यक्रम में अपर सामान्य आपदा प्रबंधन मुस्तकीम आलम ने "बात करने का हंसी तौर-तरीका सीखा हमने उर्दू के बहाने से सलीका सीखा" से अपने बातों की शुरुआत करते हुए कहा कि उर्दू सिर्फ एक जुबान ही नहीं बल्कि तहजीब है और इस तहजीब के लोग इतने दीवाने है कि कई क्षेत्रों में उर्दू के बिना काम नहीं हो सकता। उन्होंने उर्दू भाषा को रोजगारपरक बताते हुए कहा कि वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा उर्दू शिक्षकों एवं उर्दू अनुवादकों की बड़े पैमाने पर बहाली कर उर्दू भाषा से शिक्षा प्राप्त करने वालों को रोजगार प्रदान किया है।


 आयोजित कार्यक्रम में मदरसा एवं विद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा बिहार गीत एवं अन्य प्रस्तुति दी गई। तथा सेमिनार में उर्दू भाषी विद्वानों द्वारा आलेख प्रस्तुत किया गया साथ ही जिलेभर के दो दर्जन शायरों ने अपनी प्रस्तुति से बेहतरीन समा बांधा। कार्यक्रम का संचालन मो बदीउज्जमा ने किया। कार्यक्रम में निदेशक डीआरडीए ऋषव, अंजुमन उर्दू तरक्की बिहार के महासचिव कारी रिजवान अहमद, दानिश वकार, मो सलाउद्दीन, जिला उर्दू भाषा कोषांग के नावेद अकरम, मो फखरुद्दीन जमाल हैदर, मो जमालुद्दीन, हाफिज नसीम इकबाल, निहाल नदवी प्रो नूरजहां, प्रो मुकीम अहमद खान, शायर कैसर राणा, बशारत करीम, बेगाना सारंगी, मो इरशाद आलम, अशफाक अहमद लुकमान दानिश, हशमत सिद्दकी, हफीजुल्लाह अजहर, साकिब अनवर, नजमुद‌दीन रहमानी, अजीमुल्लाह, मो नूर आलम एवं जिया उल्लाह, जिया रहमानी आदि मौजूद थे। बरकत उल्लाह गाजी आदि मौजूद थे।


 छात्र अब्दुल बारीक, अब्दुल खालिफ ने बिहार लोक गीत और अकलीमा फातमा, राफिया प्रवीण एवं सोफिया प्रवीण ने गजल "उर्दू और हिंदी में फर्क तो है इतना, वह ख्वाब देखते हैं और हम देखते हैं सपना" गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।  



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