सुपौल। पूर्व सांसद आनंद मोहन रविवार को सुपौल में एक निजी कार्यक्रम में पहुंचे। जहां उन्होंने मीडिया को संबोधित करते कहा कि अभी जो चुनाव परिणाम आया है, यह निश्चित तौर पर बीजेपी को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिया है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। मैं मानता हूं कि इसमें विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी उसकी आत्मुक्ता वजह बना। जो माहौल नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता को लेकर बनाया था, उस प्रयास को पंचर कर दिया गया। जिस तरह से नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन को लेकर आगे निकले, अगर इसको एक स्वरूप प्रदान करते हुए चुनाव में जाया जाता और जो विपक्ष की बड़ी पार्टियां और उसके छत्रप थे उन सबों को चुनाव व अभियान में शामिल किया जाता तो रिजल्ट कुछ और होता।
कहा कि मीडिया ने जो आकलन दिया, समीक्षा कर कांग्रेस के फेवर में रिपोर्ट निकाला, वो कांग्रेस की आत्मुक्ता का और मुगालता का कारण बनी और परिणाम को प्रभावित किया।अगर कांग्रेस इसी परिणाम के लिये विपक्षी एकता की मुहिम को रोके हुआ था और इसी परिणाम को लेकर कांग्रेस तीन महीने से व्यस्त थी, इस व्यस्तता की भी कांग्रेस आलाकमान को समीक्षा करनी चाहिये। कहा कि अगर इन तीन राज्यों में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, देवेगौड़ा, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, फारूख अब्दुल्लाह को अभियान में सम्मलित किया जाता तो परिणाम कुछ और होता। इसमें कांग्रेस नाकामयाब रही और जो परिणाम आया, इसकी वजह बनी। पूर्व सांसद ने कहा कि मजबूत केंद्र के खिलाफ मजबूत विपक्ष होना चाहिये। आज जो स्थिति है, यह लोकतंत्र के हित के लिये नहीं है। केंद्र चाहता है कि उसके सामने कोई विपक्ष नहीं हो, उसके सामने कोई आवाज ही नहीं उठे। यह एक गलत परंपरा की नींव रखी जा रही है। निलंबन के बदले आत्ममंथन होना चाहिये. हमें सुनने का साहस होना चाहिये। लेकिन निलंबित करना, बर्खास्त करना यह लोकतंत्र के लिये कहीं से भी शुभ नहीं है और जिस तरीके से धनखड़ साहब की मीमिक्री को उछाला जा रहा है और एक जाति विशेष को कह रहा है कि उसका अपमान है। कहा कि मैं पूछना चाहता हूँ कि उसी सदन में जिस तरीके से प्रधानमंत्री जी उस समय के नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस के लीडर का जिस अंदाज में मिमिक्री कर रहे थे, सदन के अंदर, वो कहां से सराहनीय है। अगर यह निंदनीय है तो वह सराहनीय कहां से है, इन बातों पर विचार होना चाहिये, देश देख रहा है।
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