सुपौल। अग्रहायन शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि यानी 17 दिसंबर से खरमास (पौष मास)आरंभ हो रहा है, जो 15 जनवरी 2024 यानी मकर संक्रांति के दिन समाप्त होगा। जानकारी देते त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि खरमास मानव को अंत: जीवन में संपोषित करता है। ताकि जीवन सांसारिक के साथ-साथ आध्यात्मिक मार्ग पर संतुलित होकर सम्यक रूप से ग्रहण कर सके।
बताया कि वैदिक काल में मासों के नाम आकाशीय और वातावरणीय प्रभावों के आधार पर ही रखे गए हैं। खरमास होने का कारण यह है कि मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के सहारे यात्रा करते हैं। परिक्रमा के दौरान यात्रा में अधिक थकान की वजह से सूर्य के सातों घोड़े हेमंत ऋतु में एक तट पर रुक जाते हैं। लेकिन सूर्य को अपना दायित्व कर्तव्य धर्म स्मरण रहता है कि वह परिक्रमा करते हुए कहीं रुक नहीं सकते। अतः सृष्टि में किसी प्रकार का कोई संकट नहीं आये, इसलिए भगवान सूर्य ने समीप में खड़े दो गधों यानि खर (गधा) को ही अपने रथ में जोत कर यात्रा परिक्रमा जारी रखा। गधे मंद गति से पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे इसी कारण इस मास में सूरज का तेज कमजोर होता है। मकर संक्रांति के दिन पुनः सूर्यदेव घोड़ा को अपने रथ से जोड़ते हैं, तब उनकी यात्रा पुनः रफ्तार पकड़ लेती है। धरती पर सूरज का तेजोमय प्रकाश बढ़ने लगता है। खरमास में लोग अपने मन पर संयम रखकर सदाचार के द्वारा आध्यात्मिक विकास कर सकते हैं। आचार्य ने बताया कि 17 दिसंबर से खरमास आरंभ हो रहा है और इसी दिन भगवान पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानंद स्वरूप परमपिता परमेश्वर भगवती सीता राम विवाह महोत्सव जो जनकपुर में वैसे तो संपूर्ण भारत में लेकिन जनकपुर में विशेष उत्सव मनाया जाता है और उसी के साथ खरमास प्रारंभ हो जाएगा। खरमास में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य व धार्मिक कार्य जैसे शादी विवाह, गृह प्रवेश, सगाई, मुंडन, नामकरण, यज्ञोपवीत संस्कार या कोई भी विशेष यज्ञ नहीं किए जाते हैं। मकर संक्रांति होने के बाद सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। इस अवधि में यदि किसी को ग्रहों के मार्केशादि ग्रहों के उपस्थित होने पर महामृत्युंजय जाप आदि अनुष्ठान करने से दोष नहीं होता है।
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