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  •  एसएफसी गोदाम से डीलरों को मापकर नहीं मिल रहा खाद्यान्न, जीवछपुर के डीलर की 677 किलो अनाज रास्ते से हो गई चोरी
  • डोर स्टेप डिलीवरी के नाम पर बोरियों से गायब हो रहे खाद्यान्न, डीलरों को कम आपूर्ति होने से उपभोक्ताओं का छिन रहा निवाला
  • 14 हजार 239 किलो खाद्यान्न में 677 किलो की कम हुई आपूर्ति, जीवछपुर के डीलर के साथ डीएसडी ने किया कारनामा

गोदाम परिसर में ट्रक से सीधे डीएसडी वाहन पर लोड हो रहा खाद्यान्न।

(सुपौल ) छातापुर। एसएफसी गोदाम से जविप्र विक्रेताओं की दुकान तक खाद्यान्न आपूर्ति में डोर स्टेप डिलीवरी के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। डीलरों को मापकर खाद्यान्न नहीं दिये जाने के बारंबार सवाल पर विभाग की चुप्पी जहां समझ से परे है। वहीं डीलरों से मनमाफिक कटौती के कारण गरीब उपभोक्ताओं का निवाला छिन रहा है। अव्वल तो एसएफसी गोदाम से आवंटित खाद्यान्न में कटौती का खेल चल रहा है और फिर डोर स्टेप डिलीवरी के नाम पर रास्ते से ही खाद्यान्न गायब हो जाने का रिवाज चरम पर है। इस खेल का खामियाजा डीलर उठाते हैं और यह कहानी उपभोक्ताओं के प्रति यूनिट कटौती पर आकर खत्म होती है। चर्चा तो यहां तक है कि डीलरों से एसआईओ के नाम पर प्रति क्विंटल अवैध राशि की वसूली मौलिक अधिकार में शामिल हो चुका है। बानगी देखिये, मंगलवार की देर रात छातापुर प्रखंड के जीवछपुर के जविप्र विक्रेता वैभव कुमार सिंह को डोर स्टेप डिलीवरी के वाहन से खाद्यान्न की आपूर्ति की गई। विक्रेता को 11308 किलो चावल व 2931 किलो गेहूं की आपूर्ति होनी थी। लेकिन खाद्यान्न भरी बोरियों की दशा देख विक्रेता को संदेह हुआ और उन्होंने डीएसडी के चालक के समक्ष आपूर्ति किये गए खाद्यान्न की मापी करवाई। मापी के बाद जो हालात सामने आए चौंकाने वाले थे। कागज तो दुरुस्त था पर अनाज बोरी निगल गए थे। किसी पैकेट में 33 तो किसी में 42, इतना ही नहीं एक बोरी में तो 28 किलो खाद्यान्न पाए गए। अन्य बोरियों की भी अलग-अलग कहानी थी। यह सब 50 किलो की रिसीविंग के नाम पर हुआ था। 

11308 में 470 किलो चावल बोरियों से थे गायब तो 2931 किलो गेहूं में 208 किलो की हो गई चोरी

छातापुर एसएफसी गोदाम से जीवछपुर की दूरी महज 12 किमी है। लेकिन खाद्यान्न चोरी के निराले खेल को परखिये, महज 12 किमी की डोर स्टेप डिलीवरी में 677 किलो खाद्यान्न गायब हो गए। खाद्यान्न की आपूर्ति डोर स्टेप डिलीवरी के वाहन संख्या- बीआर 11 एस/ 8534 और बीआर 11 जीए/ 9137 से की गई थी। जिसके चालक ने लिखित रुप में खाद्यान्न की कम आपूर्ति को स्वीकारा। किसने चुराया, कौन यह खेल खेल रहा है, यह अनजानापन नहीं है। जाने बुझे इस खेल के माहिर खिलाड़ियों को सभी जानते हैं और गरीबों का पेट काटने के मामले में ऐसी शख्सियतों को महारत हासिल है। बावजूद बदनाम विभाग अपनी सेहत में सुधार के लिए कोई उपाय नहीं कर रहा। जविप्र विक्रेता वैभव कुमार सिंह तो मात्र एक उदाहरण हैं। खेल तो सभी के साथ हो रहा है। बस हासिये पर लिए जाने के डर से किसी की जुबान नहीं खुलती। अब जरा हालात पर गौर करें तो जब विक्रेता को ही 677 किलो खाद्यान्न कम मिलेंगे तो वे अपने उपभोक्ताओं को कहां से पूरा कर पाएंगे। मतलब साफ है, उपभोक्ताओं से कटौती के लिए बदनाम डीलरों पर तो गाज गिरने की प्रथा पुरानी है। यदि बेरोकटोक अपने धंधे को अंजाम देने के लिए खुले छोड़े गए हैं तो वे हैं डोर स्टेप डिलीवरी के संवेदक, जो दिन दूनी और रात चौगुनी सरकारी खाद्यान्न की चोरी कर मालामाल हो रहे हैं।

चालक व मजदूरों के मेहनताना की हो रही हकमारी, वाहन पर गिरे खाद्यान्न से होता है इनका गुजारा 

जानकारों की मानें तो डोर स्टेप डिलीवरी वाहन के चालकों को मामूली तनख्वाह का भुगतान किया जाता है, जिस कारण वाहनों से खाद्यान्न के गायब होने की प्रथा जोरों पर है। यदि सख्ती होती है तो ये लोग वाहनों पर गिरे खाद्यान्न से ही अपना गुजारा करते हैं। यही हाल गोदाम पर कार्यरत मजदूरों का भी है। वाजिब मेहनताना नहीं मिलने के कारण इनकी भी दिशा वही होती है जिससे वाहन चालकों का जीवन यापन होता है। हालांकि इस बाबत पूछने पर एजीएम की अनुपस्थिति में वितरण का कार्य देख रहे डाटा इंट्री ऑपरेटर जितेंद्र कुमार ने बताया कि उनके गोदाम से उक्त डीलर को माप कर खाद्यान्न भेजा गया था। यदि डीलर के गोदाम पर हुई मापी में खाद्यान्न कम मिले हैं तो इसके लिए डीएसडी जिम्मेदार है।


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