संजीव कुमार
पिपरा (सुपौल)। कभी नोटबंदी के लिए लाइन में लगना पड़ा था तो लोगों ने उस समय यह नहीं सोचा था कि आने वाले दिनों में यूरिया के लिए भी लाइन में लगना पड़ेगा। कुछ यही हाल प्रखंड मुख्यालय पिपरा में लगातार देखने को मिला रहा है, लोग सुबह से लंबी कतारें में यूरिया लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हैं यहाँ तक कि कई लोग रात में ही आकर कतार में खड़े हो जाते हैं।
देश के सबसे गरीब राज्य की सूची में शामिल बिहार की 76 फीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी है। लेकिन सरकार खेती के लिए किसानों की मूल जरुरत डीएपी-यूरिया की जरुरत नहीं पूरी कर पा रही है। धान के बाद गेहूं के सीजन में किसान यूरिया के लिए मारे-मारे घूम रहे हैं। दिन-रात की लाइन लगा रहे हैं। ब्लैक में दोगुनी कीमत पर यूरिया खरीदने को मजबूर हैं।
प्रदेश में करीब 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य में खेती होती है। बिहार में 104.32 लाख किसानों के पास कृषि भूमि है, जिसमें 82.9 प्रतिशत भूमि जोत सीमांत किसानों की है, 9.6 फीसदी छोटे किसानों के हैं और केवल 7.5 फीसदी किसानों के पास ही दो हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन है। पूरे राज्य में 10 लाख टन यूरिया की सालाना खपत है। ऐसे में अगर समय रहते किसानों को समय पर यूरिया नहीं प्राप्त हुआ तो फसल क्षति होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। कतार में खड़े एक किसान शिबू मुखिया ने बताया कि खेत में पटवन हुए कई दिन हो चुका है, खेत में इतनी नमी हैं कि अगर यूरिया नहीं देंगे तो गेहूं भी नहीं हो पाएगा।
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