रामलखन प्रसाद
निर्मली (सुपौल)। बिहार सरकार का शराब बंदी कानून कागज पर ही सिमट कर रह गया है। शुरुआती दौर में लोगों को लगा था कि शराब बंदी के कारण गरीब गुरुवे परिवार के लोगों की दैनिक जीवन शैली में बदलाव के साथ आर्थिक रुप से सुधार आएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका।
हालात यह की सीमावर्ती छेत्र के भारतीय मूल में बसे गांव के वैसे रिश्तेदार जो शराब पीने के अय्याशी हैं उन्हें सटे नेपाल के भूभाग पर अवस्थित बाजार और कस्बे तक पहुंचाकर आगंतुओं की खातिरदारी तो करते ही हैं साथ साथ खुद जो पहले से शराब के आदि हैं अपनी इच्छा भी पूर्ण कर लेते हैं। मेहमान के खातिरदारी व्यवस्था के कारण नेपाल का बाजार और कस्बा गुलजार गया है। शराबबंदी के बाद खुले बॉर्डर के कारण नेपाल के शराब दुकानदार और होटल वाले की कमाई अच्छी खासी होने लगी है। सीमावर्ती क्षेत्र में जारी इस व्यवस्था पर सरकार के प्रशासनिक तंत्र कभी भी हा नही भर सकेंगे इसलिए कि सरकार से उन्हें डर है लेकिन असलियत उनकी जानकारी में इस से इनकर भी नहीं किया जा सकता है।
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